“नस्लें ऐ याद रखेंगी” एक एंकर ऐसा भी था |
बेबाक ,जज्बात ,जज्बाती जुनून,
आवाज में खनक बेहतरीन इंसान निडर पत्रकारिता सुरुली “गायक” लापरवाही और बेपरवाही जीने के अंदाज का हिस्सा इसे कहते हैं विनोद दुआ। जाने-माने टीवी एंकर, न्यूज़ इंडस्ट्री की भीष्म पितामह टीवी पत्रकारिता के एक युग का अंत है, इन्हीं की वजह से टीवी पर हिंदी पत्रकारिता पहली बार रोशनी जगमग आई थी। उस समय जब टीवी की दुनिया दूरदर्शन तक समिति थी और टीवी पत्रकारिता नाम के लिए भी नहीं थी और विनोद दुआ धूम्रकेतु की तरह उभरे और तीन दशक तक पत्रकारिता जगत के बीच जगमगाते रोशनी के तरह अपनी पहचान छोड़ी। शुरुआती दौर दूरदर्शन के समाचार कार्यक्रम की एंकरिंग से हुई थी, उस समय टीवी पर चुनाव परिणामों के जीवंत विश्लेषण उनकी शोहरत को आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। एनडीटीवी के मालिक प्रणयराय के साथ पूरे मुल्को को सम्मोहित व समाहित कर लिया था। बतौर टीवी पत्रकारिता में विनोद दुआ का अपना विशेष अंदाज हुआ करता धा। उनका एक सधा हुआ कार्यक्रम टीवी पर जनवाणी होता था यह अलग तरह का कार्यक्रम होता था।इस इस कार्यक्रम में देश के जाने-माने मंत्रियों को बुलाकर बेवा की से सवाल किया जाता था और बेहद खास टिप्पणी करते थे उसीकी परिकल्पना करना उस जमाने में एक असंभव सी बात लगती थी। मंत्री के मुंह पर आलोचना करने का साहस और हिम्मत विनोद दुआ में थी बाद में इस कार्यक्रम को बंद करने के लिए प्रधानमंत्री से गुहार लगाई गई, मगर वे कामयाब नहीं हुए। विनोद दुआ ने अपना अंदाज कभी नहीं छोड़ा आज के इस चाटुकारिता के दौर में अधिकांश पत्रकार अपने को चाटुकारिता और तलवे चाटना गौरवान्वित महसूस करते हैं। विनोद दुआ नाम का शख्स सत्ता से टकराने में कभी नहीं घबराया
उन्होंने कभी भी इस बात की परवाह नहीं की कि सत्ता वाले उनके साथ क्या व्यवहार करेंगे हालांकि सत्तारूढ़ दल ने उनके राष्ट्रद्रोह मामले में फंसाने का कोशिश भी की। अंततोगत्वा उन्होंने लड़ाई लड़ी और सुप्रीम कोर्ट से जीत भी हासिल की।
हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर विनोद दुआ साहब की पकड़ अकल्पनीय, अविश्वसनीय थी उनके पास त्वरित अनुवाद करने की क्षमता बेहद ही अद्भुत था। बे मातृभाषा हिंदी में कार्य कर रहे हैं इस तरह कहें कि उन्हें हिंदी की लोकप्रियता और प्रतिष्ठा दिलाने वाले शख्स के तौर पर याद रखा जाएगा।
देश की पहली हिंदी सप्ताहिक दृश्यातमक पत्रिका परख की उन्होंने ही शुरुआत की थी इस पत्रिका के निर्माता-निर्देशक भी थे विनोद दुआ टीवी पत्रकारिता की पहली पीढ़ी के एंकर के अगुआ थे। जब डिजिटल पत्रकारिता के दौर आया तो वे आसानी से वहां भी अपनी प्रतिभा को पहचान बनाने में कामयाब रहे द वायर और एचडब्ल्यू पर उनके शो के दर्शकों की संख्या काफी तादाद में हुआ करता था।
वे देश के लगातार पढ़ने वाले संप्रेषक थे। बे हिंदू- उर्दू के साहित्य उन्होंने काफी पढ रखा था और उन में पढ़ने की जिज्ञासा भी बनी रहती थी साहित्यिक विषयों पर भी उनका अध्ययन चलता रहता था किताबों उनकी अभिन्न मित्र हुआ करती थी।
दुआ साहब जिंदादिली जोश ओ- खारोश से लबरेज थे। उनके पास लतीफे और प्रसंग होते थे और इसकी चुटकुले में उन जैसा उस्ताद मैंने कोई दूसरा नहीं देखा। उनकी कॉमेडियन वेटी में शायद यह गुण उन्हीं के वजह से पैदा हुआ होगा उन्हें गाने बजाने का बेहद शौक था उनकी पत्नी डॉ चित्रा पद्मावती भी गाने बजाने में साथ दिया करती थी। उनकी पत्नी कोरोना काल के दौरान ही गुजर गई थी इससे वे आहत ही नहीं मर्माहत भी थे।

विनोद दुआ जमीन से जुड़े व्यक्ति थे उनका परिवार देश विभाजन के समय पाकिस्तान के डेरा इस्माइल खान से भाग कर आया था उसने भी वे तमाम दुश्वावरियां झेली होगी जब विभाजन पीड़ितों को झेलनी पड़ी थी
टीवी पत्रकारिता के दिग्गजों में से एक विनोद दुआ रामनाथ गोयंनका पत्रकारिता सम्मान पाने वाले पहले टीवी पत्रकार हुए । कुछ लापरवाही और बेपरवाहियाॅ थी मगर उनके जीने का सलीक अंदाज का हिस्सा था उन्हें किसी में लिजलिजापन पसंद नहीं आता था गणेश जी के बहुत बड़े दीवाने थे
टीवी पत्रकारिता का शानदार पन्ना आज अलग हो गया|
बाहर हाल विनोद दुआ का इस तरह ऐसे समय में जाना पत्रकारिता नहीं लोकतंत्र की भी एक बहुत बड़ी क्षति है, लोकतंत्र के चौथे स्तंभआज चला गया। आज जिस तरह आए दिन पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं उस परिस्थिति में जाना लोकतंत्र का बहुत बड़ा छती है उनकी उपस्थिति बहुत सारे पत्रकारों को प्रेरणा और हिम्मत देती थी जो लोकतंत्र और साझी संस्कृति को धरोहर बचाने के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन जब कभी भी विनोद दुआ का संपूर्णता में मूल्यांजकन होगा तो उन्हें एक पत्रकार योद्धा के तौर पर जाना ही नहीं जाएगा बल्कि लोग याद भी करेंगे।
✍️ डिवीजन हेड पटना “ललन प्रसाद “