वैसे भ्रष्टाचार हर विभाग में है। देश के हर स्तंभ में कहीं न कहीं भ्रष्टाचार है, लेकिन देश के चौथे स्तम्भ यानी पत्रकारिता में भ्रष्टाचार नहीं है बल्कि पत्रकारिता की जड़ों में वो एसिड डाला जा रहा है जिससे यह पूरा पेड़ ही सूख जाए। भारत जब गुलाम था तब पत्रकारिता का आजादी में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा। देशभक्त पत्रकार और लेखकों ने पर्चों के माध्यम से आजादी की अलख जगाई। कुल मिलाकर देश की आजादी में पत्रकारिता का बहुत बड़ा योगदान है, लेकिन आश्चर्य और दुख की बात यह है कि आजाद भारत में पत्रकारिता अब धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। अब ग्राउंड रिपोर्ट और एक्सक्लूसिव खबरों की जगह पैकेज ने ले ली है। अखबार और न्यूज़ चैनल के मालिक और संपादक प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री मंत्री और नेताओं से संबंध बनाने के लिए बेचैन हैं।अखबार अब उद्योगपतियों के काले कारनामे दबाने का माध्यम बन चुका है। अधिकतर अखबार और चैनल मालिक उद्योगपति हैं या उद्योगपति मीडिया हाउस के मालिक हैं। पत्रकारिता पूरी तरह बिजनेसमैन के हाथों में चली गई है। संपादक मैनेजर बन गए हैं। अब संपादक फंड जुटाने का बड़ा सोर्स बन गया है। संपादक अखबार या टीवी मालिक के आयोजनों में बड़े-बड़े नेताओं को बुलाने वाला आमंत्रण पत्र बन गया है। अब अखबारों से एक्सक्लूसिव खबरें, ग्राउंड रिपोर्टिंग और मौके से दी जाने वाली रिपोर्ट या खबरें और तो और अखबारों से संपादक की संपादकीय भी गायब है। ऐसा इसलिए हुआ है ताकि मीडिया सरकार के नियंत्रण में रहे।
अखबार अगर संपादक के नियंत्रण में होगा तो आम जनता की बात होगी,सरकार का भ्रष्टाचार उजागर होगा, सरकार को आईना दिखाने का काम अखबार और टीवी करेंगे, लेकिन जब मीडिया संपादक के नियंत्रण से बाहर हो जाएगा तो वह बिजनेसमैन के हाथ में होगा। यही कारण है हमारे देश में मीडिया की दुर्दशा का। यही कारण है कि आजाद कराने वाला मीडिया आजाद भारत में गुलाम हो चुका है। एक दौर था जब अखबार या टीवी के पत्रकार से मिलने के लिए नेताजी घंटों बैठे रहते थे, लेकिन अब नेताजी के दफ्तर और घर में पत्रकार और संपादक घंटों बैठे रहते है इंतजार करते हैं। संपादक अब रिपोर्टरों को स्टोरी आईडिया नहीं देता है बल्कि गुलदस्ता देता है और कहता है फलां नेता जी का आज़ जन्मदिन है उन्हें संस्था की तरफ से दे आना। संपादक जन-संपर्क आफिस और मंत्रियों के बंगलों पर अखबार मालिकों के हित में गुहार लगाते देखे जा सकते हैं।
वैसे जिस तरह एक मछली तालाब को गंदा कर देती है तो एक मछली ही तालाब की गंदगी को भी साफ कर देती है।
अब कीमत उसी की होगी जो जनता की बात कहेगा, अब कीमत उसी की होगी जो जनता के दर्द को उसकी तकलीफ को उसके शोषण को लिखेगा। इसलिए कलम उठाओ और लिखना शुरू कर दो जनता के लिए।