पटना डेस्क, : बिहार विधान मंडल का एक दिवसीय विशेष सत्र बुधवार को स्पीकर विजय कुमार सिन्हा के संबोधन के साथ शुरू हुआ। इससे पहले विधानसभा में राष्ट्रगान बजाया गया। एक दिन पहले तक कयास लगाए जा रहे थे और कुछ नेताओं ने दावा किया था कि स्पीकर विजय कुमार सिन्हा को आसन पर बैठने नहीं दिया जाएगा। सत्र शुरू होते ही उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होगी और आसन पर उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी बैठेंगे। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं। आसन पर विजय कुमार सिन्हा ही बैठे और उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की तारीफ की। उन्होंने काफी बातें कहीं और अंत में पद से इस्तीफा देने की घोषणा की। लेकिन, इससे पहले एक ऐसा फैसला लिया, जिससे राजद और जदयू के नेता चौंक गए।
लोकतंत्र में संख्या बल की भूमिका पर बोले लोकतंत्र में संख्या बल की भूमिका पर बोले स्पीकर बोले- सबका हार्दिक अभिनंदन करता हूं। लोकतंत्र में संख्या बल की निर्णायक भूमिक होती है। मैं इस सदन में बहुमत से निर्वाचित हुआ था। मैं सीएम और नेता प्रतिपक्ष को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मुझमे विश्वास जताया। मैंने प्रयास किया सबको साथ लेकर चलूं।
अविश्वास प्रस्ताव पर कही ये बात
निष्पक्षता से मैंने सबकी मान-मर्यादा बढ़ाने का प्रयत्न किया। एक नई राजनीतिक घटना के तहत नई सरकार का गठन हुआ। बिना किसी विवाद के सरकार अपना काम करने भी लगी। किंतु इसी बीच कतिपय सदस्यों के कारण कुछ सदस्यों ने अध्यक्ष पद से हटाए जाने का संकल्प प्रस्तुत किया। लोकतंत्र में परिस्थितियां और समय दोनों परिवर्तनशील है।
श्रीबाबू के समय के हालात का किया उल्लेख
उन्होंने बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीबाबू और तब के विधानसभा अध्यक्ष विंध्येश्वरी वर्मा के प्रसंग का उल्लेख किया। कहा कि उस समय भी इस तरह का अविश्वास प्रस्ताव आया था। तब कोट किया गया था कि लोकतंत्र के नियमों के अनुसार सबके अधिकारों की रक्षा होती है। यदि किसी भी पक्ष को बलात चुप कराने का प्रयास किया गया तो यह अनाचारी व्यवस्था बन जाती है।
अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने पर जताया दुख
अनाचारी व्यवस्था का परिणाम सबने देखा है। हम सबसे अनुरोध करेंगे कि आसन की मर्यादा का ध्यान रखकर हम अवश्य निर्णय लेते, लेकिन अफसोस है कि ऐसा करने का अवसर ही नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि नैतिकता की चर्चा नहीं करेेंगे।
बोले- आरोपों का जवाब देना था जरूरी
विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि लोकतंत्र की खूबसूरती कहें या बदसूरती कहें यह जनता के ऊपर छोड़ता हूं। नई सरकार के गठन के साथ मैं स्वतः अपना पद त्याग कर देता, लेकिन इसी बीच पता चला कि मेरे खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव भेजा गया। इस परिस्थिति में उनके आरोप का सही जवाब देना हमारी नैतिक जिम्मेवारी बन गई थी। अगर हम इस्तीफा देते तो उनके आरोपों का जवाब नहीं मिल पाता।
ललित यादव के प्रस्ताव को बताया सही आपने जो अविश्वास प्रस्ताव लाया है, वह अस्पष्ट है। नौ सदस्यों का पत्र मिला, जिनमें से आठ का पत्र नियमानुकूल प्रतीत नहीं होता। एक सदस्य ललित यादव द्वारा दिया गया, जो अब मंत्री हैं। उन्होंने कहा है कि आप विश्वास खो चुके हैं। यह सही लगा। लेकिन मेरी कार्यशैली और व्यवहार और तानाशाही प्रवृति का आरोप लगाया गया है। चंद्रशेखर जो अब मंत्री हैं, उन्होंने कहा कि गौरवशाली परंपरा शर्मसार हुई। जनता करेगी सही-गलत फैसला विजय सिन्हा ने कहा कि 20 महीने के छोटे से कार्यकाल में मैं प्रश्नों के शतप्रतिशत उत्तर दिलाने की व्यवस्था की। ऐतिहासक स्मृति स्तंभ का लोकार्पण करना, अतिथिशाला का शिलान्यास कराना। इन सब कार्यों से सदन की गरिमा बढ़ी है या घटी है, निर्णय सदन के सदस्यों को करना है। मैं इन सब कार्यों का मूल्यांकन जनता पर छोड़ता हूं। देश ने देखा है और इतिहास समालोचक है। अंतिम निर्णय जनता का होता है। मुख्यमंत्री का आसन के प्रति जो सम्मान था, तेजस्वी यादव जो आज मंत्री हैं, उत्कृष्ट विधायक पर मैंने जो बहस कराने का प्लान किया तो उसके पीछे मकसद विधायकों को उत्कृष्ट बनाने का था।कुछ लोगों को मेरे काम से परेशानी हुई अपने दायित्वों का निष्पक्ष तरीके से निभाया। न्याय के साथ विकास, न बचाते है न फंसाते के सरकार के निर्णय को भी लागू करने का प्रयास किया। इसमें कुछ लोगों को परेशानी भी हुुुई। कई ऐसे सदस्य हैं जिनकी छवि अच्छी है। उनकी छवि बचाने की जिम्मेवारी हम सबकी है।हम सबकी जिम्मेवारी है, ठहरी हुई विरासत को बढ़ाने का, लेकिन दुर्भाग्य से जो आरोपी और कंलकित हैं, वे स्वच्छ को भी कलंकित करने का प्रयास करते हैं। छोटे हृदय से हम बड़ा सपना नहीं देख सकते। हमारी कथनी और करनी में जबतक अंतर रहेगा। तबतक जनता के हम कृपा पात्र नहीं बन सकते। सदन की मर्यादा और गरिमा को अक्षुण्ण रखने में जिन्होंने अपनी भूमिका निभाई हम उन्हें नमन करते हैं और प्रेरणा प्राप्त करते हैं। हमें याद रखना होगा कि यह सदन हमसे जरूर है, लेकिन यह सबसे सर्वोपरी जैसा है। आप सबने अविश्वास जताकर क्या करना चाहा, यह जनता तय करेगी। अपने 20 महीने के संक्षिप्त कार्यकाल में चालक बनकर ऊंचाई पर ले जाने का प्रयास किया। कभी चालाक बनकर सदन को बरगलाने का काम नहीं किया। बिना राग-द्वेष लोभ लालच अपने कर्तव्य का निर्वहन किया।
बिहार में स्पीकर ने दिया इस्तीफा
विधानसभा को संबोधित करते हुए पहले स्पीकर विजय सिन्हा ने अपनी पूरी बात कही। फिर अध्याशी सदस्य के रूप में नरेन्द्र नारायण यादव को मनोनीत किया। इसके बाद सदन को दो बजे दिन तक स्थगित कर दिया। संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने सदन को स्थगित करने को नियम के विरुद्ध बताया और कहा कि यह नियमानुकूल नहीं है। उपाध्यक्ष के रहते अध्याशी सदस्य को भी मनोनीत करने को भी गलत बताया। किंतु विजय सिन्हा ने संसदीय कार्यमंत्री की बातों को अनसुना कर अपने कक्ष में चले गए। दोपहर दो बजे के बाद सदन की कार्यवाही फिर से चलेगी। दूसरी पाली में सरकार के विश्वास मत पर दो घंटे की बहस चलेगी।
विवाद का समाधान निकालने की कोशिश
अब विवाद इस बात पर है कि विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी के रहते हुए भी अध्याशी सदस्य के रूप में नरेन्द्र नारायण यादव को सदन की कार्यवाही चलाने के लिए अधिकृत कर दिया। राजद के विधायक भाई वीरेंद्र ने सदन के बाहर कहा कि नरेंद्र नारायण यादव कुछ देर के लिए सदन में आसन पर जाएंगे और खुद वहीं उपाध्यक्ष को सदन चलाने के लिए आमंत्रित करेंगे। विधानसभा अध्यक्ष के आखिरी फैसले ने राजद और जदयू के नेताओं को चौंका दिया। Source – Jagran