बात है आज से 494 साल पुरानी। मुगल वंश का संस्थापक आक्रांता बाबर सेना लेकर आक्रमण करता है। उसे साम्राज्य विस्तार के लिए चंदेरी किला चाहिए था। यहां के शासक खंगार वंश के महाराजा मेदनी राय ने एक विदेशी-विधर्मी की यह शर्त ठुकरा दी। इसके बाद बाबर ने तोप और बारूद के साथ चंदेरी पर हमला बोल दिया। भारतीय सैनिक तलवार-भाला आदि शस्त्रों से लड़ते थे। ऐसे में तोप जैसे हथियारों के सामने भारतीय सेना नहीं टिक सकी। 494 साल की बात। मेदाइल का संक्रांति चंदेरी किला था। राजा के गवर्नर खंगार के वंशज के महाराजा मेदनी राय ने एक विदेशी-विधर्मी की ठुकरा दी। आबाद बाबर ने तोप और बौंड़ के साथ चंदेरी पर हमला किया। सेनापति-भाला आदि शस्त्रागार से भारतीय। ऐसे में जैसे जैसे टेस्ट मैच भारतीय नहीं होते हैं।

बाबर रातभर में पहाड़ खोदकर किले तक आ पहुंचा। देश के अन्य राजाओं का साथ न मिल सका ऐसे में महाराजा मेदनी राय ने आखिरी सांस तक मातृभूमि के लिए संघर्ष किया और वीरगति को प्राप्त हुए। बाकी भारतीय सैनिकों के खून भी चंदेरी की धरती लाल हो गई। इसका सबूत आज भी किले में मौजूद खूनी दरवाजा है। जहां से मातृभूमि की रखवाली करने वालों के खून की धार बह निकली थी। हिन्द के वीरों ने खून की एक-एक बूंद और एक-एक सांस तक मातृभूमि की रक्षा के लिए संघर्ष किया। अब बारी वीरांगनाओं की थी। अपने देश, धर्म, संस्कृति, नारी जाति, कुल गौरव की रक्षा का भार अचानक हिन्दू बालाओं पर आन पड़ा। विधर्मी युद्ध जीत चुका था। अब महिलाओं को बलात धर्म से विमुख कर उनके शील भंग का खतरा सामने था। महाराजा मेदनी राय की वीरगति के बाद महारानी मणिमाला ने खंगार वंश की हजारों महिलाओं ने अपने क्षत्रीय धर्म को निभाते हुए प्राणों की आहूति देने का फैसला किया।

एक साथ मासूम बच्चों समेत हजारों महिलाओं ने आग में कूदकर अपना शरीर अग्नि को समर्पित कर दिया। बहती रक्तधार,आग की लपटें और जौहर में जलती महिलाओं की चीख ने लोगों के मन में अपनी संस्कृति और मातृभूमि की रक्षा का कालजयी उदाहरण पेश किया। तस्वीर में यह जौहर स्तम्भ घटनाक्रम का साक्षी है। 494 वीं अमिट यादगार शहादत पर मैं महाराजा मेदनी राय और महारानी मणिमाला समेत हजारों वीर सैनिकों और वीरांगनाओं के चरणों में बारम्बार नमन करता हूं।